Kodo ki kheti kaise ki jati hai ? sama chawal ki kheti kaise ki jati hai ? दोस्तों हम सभी लोग कोदो के बीज के चावल को खाने के रूप में किया जाता है| क्या आप जानते है, कि कोदो की खेती कैसे की जाती है | इसकी खेती में मेहनत कितनी लगती है | कोदो एक प्रकार का अनाज है|
kodo se chawal kaise nikale ? kodo kya hai ? कोदो की खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है| कोदो की खेती नेपाल में भी की जाती है| कोदो की खेती में अच्छी मिटटी और मेहनत की जरुरत नही रहती है| कोदो की खेती बारिश के बाद की जाती है| धान की खेती से कोदो की खेती नही की जाती है| kodo ki kheti nepal me kaise kare ?
कोदो फसल पकने के बाद उसकी सफाई करने के बाद इसमें से चावल निकलता है जो खाने के रूप में प्रयोग किया जाता है, कोदो के चावल को स्थानीय बोली में भंगार के चावल कहा जाता है|
कोदो की फसल ज्यादा पक जाती है, तब उसके बीच खेत में ही गिर जाते हैं| कोदो के दानों से जो चावल निकलता है, उसको हम खाने के रूप में प्रयोग किया जाता है|
कोदो की फसल में प्रोटीन कितना होता है ? How much protein is in Kodo crop?
कोदो की फसल की बात करें तो जो कोदो से दाने निकलते हैं| उसमें प्रोटीन अधिक मात्रा में पाई जाती है| यह अनेक प्रकार की बीमारियों के लिए लाभप्रद है|
कुछ बीमारियां जैसे यकृत मधुमेह नियंत्रण और मूत्राशय आदि पौधों के दानों में 1.4 प्रतिशत वसा, 8.3 प्रतिशत तथा 65.9 कार्बोहाइड्रेट पाई जाती है| वैज्ञानिक के अनुसार इनमें एनीमिया लीवर डायबिटीज जैसे संबंधित अस्थमा मोटापे से बचने वाले लक्षण है|
कोदो के अनाजों में बी कांप्लेक्स अमीनो मैग्नीशियम फास्फोरस पोटेशियम जिंक विटामिन ई प्रोटीन कॉपर फाइबर कैल्शियम और फोलिक एसिड पाया जाता है।
कोदो की खेती कैसे की जाती है ? How is Kodo cultivated?
कोदो की खेती दूसरी फसल के साथ भी कर सकते हैं? कोदो की खेती के लिए अच्छी मिट्टी और ज्यादा मेहनत बाकि फसलों की अपेक्षा कम लगती है, कोदो की खेती सामान्य मिट्टी में भी कर सकते हैं|
कुछ क्षेत्रों में कुछ क्षेत्रों में पौधों की फसल के साथ मक्का की बुवाई भी करते हैं| यह फसलें गरीब एवं आदिवासी के समय में उगाई जाने वाली फसल है, क्योंकि उस समय उनके पास किसी प्रकार का अनाज खाने के लिए नहीं था|
कोदो की फसलें अगस्त से सितंबर माह में पक कर तैयार हो जाती है| बल्कि अन्य फसलें इस समय पर पककर तैयार नही होती है| जिससे किसान बाजार में खाद्यान्न के मूल्य बढ़ जाने के कारण किसान उन्हें खरीद नहीं पाता है |
उस समय 60 से 80 दिनों में पक कर तैयार होने वाली कोदो-कुटकी, सावां एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यान्नों के रूप में प्राप्त होती है |यह फसल मंडला सिवनी डिंडोरी जबलपुर जैसे राज्यों में की जाती है।
कोदो की खेती में कौन सी और कितनी खाद और उर्वरक का प्रयोग करे ? manure and fertilizer use?
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ज्यादातर किसान इन लव धान फसलों में उर्वरक का प्रयोग नहीं करते हैं ,लेकिन कुट्टी के लिए 20 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर डालते हैं|
पौधों के लिए 30 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम नाइट्रोजन की मात्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करनी चाहिए इतनी मात्रा प्रयोग करने से पैदावार अच्छी होती है |
नाइट्रोजन के आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें एक माह के अंदर शेष बची नाइट्रोजन की मात्रा का प्रयोग कर दे|
पीएसबी जैव उर्वरक 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करें या 100 किलोग्राम मिट्टी अथवा कंपोस्ट के साथ मिलाकर प्रयोग कर सकते हैं।
कोदो की खेती में निराई गुड़ाई कैसे करें ?How to do weeding ?
कोदो कि निराई बुवाई के 20 से 30 दिन के अंदर एक बार हाथ से करनी चाहिए। जहां पर पौधों की संख्या ज्यादा हो वहां पर से पौधों को उखाड़ कर जहां पर पौधे नहीं है,वहां पर रोपाई कर सकते हैं|
जिससे पौधों की संख्या उपर्युक्त बनी रहेगी ऐसा 20 से 25 दिन में करना चाहिए ऐसा कार्य पानी गिरते समय सर्वोत्तम माना जाता है|